दिल नहीं पहलू में दर्द-ए-दिल नहीं आह अब जीने का कुछ हासिल नहीं सर्द है हंगामा-ए-बज़्म-ए-जहाँ मैं नहीं तो गर्मी-ए-महफ़िल नहीं आरज़ू जब थी हज़ारों थे हरीफ़ अब कोई भी ग़म-गुसार-ए-दिल नहीं ऐ निगाह-ए-शौक़ तू धोका न दे वो तो है हद्द-ए-नज़र साहिल नहीं 'राज़' मिल जाती है फ़िक्रों से नजात शाइ'री का और कुछ हासिल नहीं