दिल नहीं उस लब-ए-ख़ंदाँ की तरफ़ जाता है तिश्ना-लब चश्मा-ए-हैवाँ की तरफ़ जाता है यार तुझ बिन मुझे ले जाते हैं यूँ बाग़ में खींच जैसे मुजरिम कोई ज़िंदाँ की तरफ़ जाता है महव याँ तक हूँ तसव्वुर में तिरे अज़-रह-ए-शौक़ हाथ हर दम तिरे दामाँ की तरफ़ जाता है बद-गुमाँ ये हूँ कि साथ उठ के चला जाता हूँ वहम गर कूचा-ए-जानाँ की तरफ़ जाता है क्या किसी पर्दा-नशीं पर है तू आशिक़ 'मारूफ़' छुप के जो गोशा-ए-पिन्हाँ की तरफ़ जाता है