दिल ने फिर चाहा उजाले का समुंदर होना फिर अमावस को मिला मेरा मुक़द्दर होना दोस्तो मैं तो न मानूँगा वो है ख़ुश्क-मिज़ाज उस ने आँखों को सिखाया है मिरी तर होना आज सुनते हैं वो माइल-ब-करम आएगा ऐ मिरी रूह मिरे जिस्म के अंदर होना मेरे होंटों पे जमी प्यास गवाही देगी मैं ने क़तरे को सिखाया था समुंदर होना मुझ से इस बार मिलोगे तो समझ जाओगे कैसा होता है किसी शख़्स का पत्थर होना