दिल-ओ-दिमाग़ में कैसा भँवर बना हुआ है ज़मीर मेरे लिए दर्द-ए-सर बना हुआ है मैं अपनी छत के लिए काटता ज़रूर मगर शजर में कितने परिंदों का घर बना हुआ है तुम इस भरोसे को फिर से भी तोड़ सकते हो जो ताज़ा ताज़ा अभी टूट कर बना हुआ है कहीं तो नक़्ब लगाती हैं रात-दिन साँसें फ़सील-ए-ज़ात में कोई तो दर बना हुआ है मैं कैसे मोम करूँ मोम जैसे शख़्स को भी वो जान-बूझ के पत्थर अगर बना हुआ है लगेगी देर उसे रेत पर उतारने में वही जो नक़्श अभी आप पर बना हुआ है हमारे दर्द के क़िस्से बयान कर कर के सुख़नवरों में बड़ा मो'तबर बना हुआ है मैं अपनी हद से तजावुज़ करूँ तो कैसे करूँ मिरा मज़ार मिरी ज़ात पर बना हुआ है