दिल पर इस काकुल-ए-रसा की चोट क़हर की चोट है बला की चोट हैं वो अफ़्सुर्दा मेरी आहों से फूल को है बहुत हवा की चोट निगह-ए-नाज़ से ख़ुदा की पनाह क्या बचाए कोई क़ज़ा की चोट आफ़रीं दिल को जो उठाता है दम-ब-दम ख़ंजर-ए-अदा की चोट गिर पड़ी आसमान से बिजली हँस के क़ातिल ने की बला की चोट बन गई ख़ून दस्त-ए-क़ातिल में रंग लाई दिल-ए-हिना की चोट तीर-ए-मिज़्गाँ चले जुदा दिल पर ग़म्ज़ा-ए-यार ने जुदा की चोट बाग़ में सब बिकस गईं कलियाँ न उठी दामन-ए-सबा की चोट दिल ये कहता है कुछ ख़ता कर के खाइए दस्त-ए-दिल-रुबा की चोट हो गया माह-ए-चर्ख़ दो टुकड़े थी ये अंगुश्त-ए-मुस्तफ़ा की चोट ग़ैर क्या समझे दर्द-ए-दिल को 'जलील' आश्ना जाने आश्ना की चोट