दिल पर सितम हज़ार करे बेवफ़ा के लब बर्छी कभी कटार लगे दिलरुबा के लब गुफ़्त-ओ-शुनीद में बड़े बेबाक हैं मगर देखा मुझे तो खुल न सके लब-कुशा के लब गुफ़्तार-ओ-आन-बान का आलम न पूछिए ख़ुश-रंग-ओ-जाँ-फ़ज़ा हैं मिरे हम-नवा के लब हो जाए पल में ख़ाक वो जिस को ये चूम लें जलते हुए शरारे हैं जान-ए-अदा के लब बोसा लिया तो हुस्न ने शर्मा के यूँ कहा रौशन किए हैं आप ने मेहर-ओ-वफ़ा के लब मासूमियत तो देखिए बा'द-ए-शब-ए-ज़िफ़ाफ़ मा'शूक़ शिकवा-संज हुआ है दिखा के लब बाग़ों से हम जो गुज़रे तो फूलों ने दी सदा कितने हसीं हैं 'शाद' तिरी दिलरुबा के लब