दिल परेशाँ है न जाने किस लिए हश्र-सामाँ है न जाने किस लिए पुर-सुकूँ गहराइयों में ज़ब्त की शोर-ए-तूफ़ाँ है न जाने किस लिए लाख आबाद-ए-तमन्ना हो के दिल फिर भी वीराँ है न जाने किस लिए मेरी बर्बादी पे मेरा हर नफ़स ज़हर-ख़ंदाँ है न जाने किस लिए तिश्ना-ए-हिम्मत जो था ज़ौक़-ए-फ़ना आज आसाँ है न जाने किस लिए ख़ाली अज़ इल्लत नहीं उन का करम मुझ पे एहसाँ है न जाने किस लिए देखिए गिरती है ये बिजली कहाँ वो पशीमाँ है न जाने किस लिए नौ-ए-इंसाँ फ़स्ल-ए-आज़ादी में भी पा-ब-जौलाँ है न जाने किस लिए