दिल सख़्त निढाल हो गया है साँस आना मुहाल हो गया है तू तेरा विसाल तेरी फ़ुर्क़त सब ख़्वाब-ओ-ख़याल हो गया है वो शौक़ कि था मता-ए-हस्ती अब जी का वबाल हो गया है क्या रब्त है मेरा रोज़ ओ शब से हर लम्हा सवाल हो गया है जो दर्द भुला दिया था तू ने वो दर्द बहाल हो गया है अब चारागरी से फ़ाएदा क्या आग़ाज़-ए-मआल हो गया है तय्यार रखो चराग़ अपने सूरज को ज़वाल हो गया है ऐ दिल मिरी जान कुछ तो बतला ये क्या तिरा हाल हो गया है लाहौर कि अहल-ए-दिल की जाँ था कूफ़े की मिसाल हो गया है इस आलम-ए-बे-कसी में 'शोहरत' जीता हूँ कमाल हो गया है