दिल समुंदर था लेकिन ये तिश्ना-लबी मेरी क़िस्मत में किस रोज़ लिक्खी गई आँख पुर-नम मगर मुस्कुराहट मिरी कह रही थी कहानी मिरे इश्क़ की इश्क़ के सैल को रोकने के लिए ग़म की दीवार रस्ते में रख दी गई ज़ुल्मतें सह गया मैं इसी आस पर चाँद निकला तो जाएगी तीरा-शबी दिलरुबा शहर के कुछ से कुछ हो गए मेरी मंज़िल मुसलसल वही की वही ख़ार चुभते गए ख़ार चुनता गया था परस्तार-ए-गुलज़ार आकिफ़-'ग़नी'