दिल सराबों से गुज़र कर शाद रख दश्त में दरिया का मंज़र याद रख सर असीर-ए-सर-बुलंदी ही रहे कज-कुलाही से मगर आज़ाद रख इस जहाँ में है ज़वाली हर उरूज याद इतना ऐ सितम-ईजाद रख क़तरा-ए-नाचीज़ समझा तू जिसे बंद है उस में समुंदर याद रख बात अपनी भूल जा तू भूल जा याद लेकिन हुरमत-ए-अज्दाद रख पास तेशा हो न हो ऐ कोहकन दिल में लेकिन जज़्बा-ए-फ़रहाद रख तेज़ आँधी के परिंद उड़ने से क़ब्ल शहपरों में सख़्ती-ए-फ़ौलाद रख दिल हमेशा संग-दिल के सामने बे-नियाज़-ए-शेवा-ए-फ़र्याद रख लो चले तो मुज़्महिल 'नादिम' न हो दिल सबा की याद से आबाद रख