दिल तो क्या जाँ से गुज़रना आया जी उठे लोग जो मरना आया सर्फ़ जब तक न हुआ दिल का लहू हर्फ़ में रंग न भरना आया हो गए सारे समुंदर पायाब जब हमें पार उतरना आया फ़स्ल-ए-गुल आई तो हर ग़ुंचे को ज़ख़्म की तरह निखरना आया जो नफ़स था वो रहा गर्म-ए-सफ़र कब मुसाफ़िर को ठहरना आया इक गुल-ए-तर की मोहब्बत में हमें कितने काँटों से गुज़रना आया वो अदब इश्क़ ने बख़्शा कि हमें मुद्दतों बात न करना आया दिल पे अपने जो पड़ी ज़र्ब 'ज़िया' टूट कर हम को बिखरना आया