दिल ये ख़ामोश था हम ज़बाँ मिल गए सब कहाँ से चले थे कहाँ मिल गए जो इताअ'त-पज़ीरी हुई ज़ाबता फूल सहरा के भी दरमियाँ मिल गए नक़्स ग़ैरों के जिन की मज़म्मत थी की वो तो मेरे ही अंदर निहाँ मिल गए सर झुकाया ही था इंकिसारी में जो मुझ को क़दमों के तेरे निशाँ मिल गए इक बशर न मिला जो चले साथ में फिर जो मिलने लगे कारवाँ मिल गए प्यास ऐसी कि प्यासी की प्यासी रही इस ज़मीं को बहुत आसमाँ मिल गए सब अयाँ हो गया जो कहा भी न था मुझ को ऐसे भी कुछ राज़-दाँ मिल गए रू-ब-रू जब वो बिछड़े तो ग़मगीन थे ख़्वाब में जो मिले शादमाँ मिल गए आतिश-ए-हिज्र में दिल सुलगता रहा रुख़ पे कितने ही दरिया रवाँ मिल गए