दिलबराँ का अपस कूँ दास न कर दास होता तो दिल उदास न कर गर अलक पर है लक तो चक सूँ झटक चक की उम्मीद अलक की आस न कर लट कूँ लट-पट हो रुख़ पे रीज निकू सूत कांती को फिर कपास न कर बुल-हवस बुल्बुलाँ नमन हर बन देख अपस दुख की इल्तिमास न कर या'नी यक ठार यक यक़ीं सू उछ बाज यक दूसरा क़यास न कर गर जो दिल जल धुंवाँ असास में नीं तू कुबूदी अबस लिबास न कर तोड़ अपस का हिजाब ऐ 'बहरी' मुल्क में मन के उस मवास न कर