दिलबराँ लोग ख़ूबसूरत हैं मेरी जाँ लोग ख़ूबसूरत हैं फूल जिन के निसार जाते हैं मेहरबाँ लोग ख़ूबसूरत हैं मुझ से मत कर शुऊ'र की बातें सुन मियाँ लोग ख़ूबसूरत हैं ख़ाक से तू जिन्हें बनाता है वो जहाँ लोग ख़ूबसूरत हैं बस्तियाँ जो मिरी जलाते हों वो कहाँ लोग ख़ूबसूरत हैं अम्न की जुस्तुजू में निकले हुए बे-अमाँ लोग ख़ूबसूरत हैं जब से तू बद-गुमाँ हुआ 'आदिल' बद-गुमाँ लोग ख़ूबसूरत हैं