दिलदार दिल इस तरह बहम आए नज़र में जिस तरह गुहर आब में और आब गुहर में इक बार भी देखा न उसे पास से जा कर आया ही नज़र वो तो कहीं राहगुज़र में हर-चंद कि है शाम-ओ-सहर वो ही पर उस बिन वो लुत्फ़ न अब शाम में है और न सहर में क़िस्मत से मदद चाहता हूँ इतनी कि हर वक़्त मानिंद-ए-सबा साथ रहूँ उस के सफ़र में इक बार तो नाले की हो रुख़्सत हमें सय्याद पिन्हाँ रखें हम कब तईं फ़रियाद जिगर में होश-ओ-ख़िरद-ओ-सब्र-ओ-तवाँ उठ चले इक एक जाते ही तिरे चाल पड़ी दिल के नगर में कीधर को निकल जावें 'हसन' क्या करें हम आह बाहर ही ये दिल अपना न लगता है न घर में