दिलदार की कशिश ने ऐंचा है मन हमारा है ख़ाक इस क़दम की शायद वतन हमारा ऐ दोस्तान-ए-जानी दिल सीं करो तवज्जोह ता-जान पास अपने पहुँचे बदन हमारा गर ज़िंदगी है बाक़ी फिर तुम सीं आ मिलेंगे दीदार आख़िरी है जो है मरन हमारा दरया-ए-मुद्दआ का लाए हैं थाह जब सीं हर बूँद अश्क का है दुर्र-ए-अदन हमारा दरकार नहीं है पहरें बर में क़बा-ए-ज़ीनत ये बस है ख़ाकसारी ख़ाकी बरन हमारा सब छोड़ खा़नुमा कूँ हैं उस की जुस्तुजू में है दश्त और बयाबाँ बाग़-ओ-चमन हमारा मानिंद-ए-कोहकन है बे-कल 'सिराज' का दिल शायद कि मान लेवे शीरीं-सुख़न हमारा