दिलदार उस को ख़्वाह दिल-आज़ार कुछ कहो सुनता नहीं किसू की मिरा यार कुछ कहो ग़म्ज़ा अदा निगाह तबस्सुम है दिल का मोल तुम भी अगर हो उस के ख़रीदार कुछ कहो शीरीं ने कोहकन से मँगाई थी जू-ए-शीर गर इम्तिहाँ है उस से भी दुश्वार कुछ कहो हर आन आ मुझी को सताते हो नासेहो समझा के तुम उसे भी तो यक-बार कुछ कहो ऐ साकिनान-ए-कुंज-ए-क़फ़स सुब्ह को सबा सुनते हैं जाएगी सू-ए-गुलज़ार कुछ कहो आलम की गुफ़्तुगू से तो आती है बू-ए-ख़ूँ बंदा है इक निगह का गुनहगार कुछ कहो 'सौदा' मुवाफ़क़त का सबब जानता है यार समझे मुख़ालिफ़ उस को कुछ अग़्यार कुछ कहो