दिल-ए-मुज़्तर को समझाया बहुत है हुआ तन्हा तो घबराया बहुत है मुबारक हो तुझे ये क़स्र-ए-रंगीं मुझे दीवार का साया बहुत है मिरे दिल का ये आलम भी अजब है कि जिस पर आ गया आया बहुत है तिरे इस फूल से चेहरे ने अब के मिरे ज़ख़्मों को महकाया बहुत है तिरे वादों में शायद कुछ कमी है उफ़ुक़ पर चाँद गहनाया बहुत है ये दौलत ले के 'अनवर' क्या करूँगा तिरी यादों का सरमाया बहुत है