दिल-ए-नादाँ कोई महशर न उठाना इस वक़्त आ रहा है मिरी बातों में ज़माना इस वक़्त कर्ब-ए-तन्हाई की तावील तो मुश्किल है बहुत कैसे चुप-चाप हुआ आप का आना इस वक़्त रस्म-ए-तज्दीद-ए-मरासिम भी ज़रूरी है मगर याद आया है मुझे वक़्त पुराना इस वक़्त ये घड़ी कोई फ़रामोश नहीं कर सकता मेरी आँखों में है इक ख़्वाब सुहाना इस वक़्त आ रहा है कोई फिर दाम-ए-नज़र में 'जाफ़र' ऐसे मंज़र से निगाहें न हटाना इस वक़्त