दिल-ए-सद-चाक में क्या रह गया है लहू बह बह के आधा रह गया है जहाँबानी रहा था जिस का शेवा वो बिल्कुल बे-सहारा रह गया है बना बैठे हैं कितने बुत जहाँ में जो सच्चा है वो तन्हा रह गया है अदावत के ये किस ने बीज बोए हर इक इंसाँ अकेला रह गया है तुझे 'सादी' थी दरिया की बशारत मगर आँखों में सहरा रह गया है