दिल-ए-तबाह हो ख़ंदाँ नहीं तो कुछ भी नहीं ख़िज़ाँ में रंग-ए-बहाराँ नहीं तो कुछ भी नहीं वो दिल जो नाम-ए-मोहब्बत पे मुस्कुराता है हरीफ़-ए-गर्दिश-ए-दौराँ नहीं तो कुछ भी नहीं ये कर्ब-ओ-आह की दुनिया अजीब दुनिया है अगर हयात ग़ज़ल-ख़्वाँ नहीं तो कुछ भी नहीं जहाँ की ख़ाक जो छाने कोई तो क्या हासिल तवाफ़-ए-कूचा-ए-जानाँ नहीं तो कुछ भी नहीं ज़माना लाख तरक़्क़ी किया करे लेकिन दिलों में अज़्मत-ए-इंसाँ नहीं तो कुछ भी नहीं