दिल-ओ-दिमाग़ में फिर मशवरा सा होने लगा By Ghazal << मुझे रास आ गई है यही हालत... दिल का हर साज़ छिड़ा साज़... >> दिल-ओ-दिमाग़ में फिर मशवरा सा होने लगा मैं अपने आप से ख़ुद ही लिपट के रोने लगा सितारे टूट के गिरने लगे बिछौने पर मैं ले के चाँद को बाँहों में जब भी सोने लगा उधर नज़र ने तआ'रुफ़ का अब्र दिखलाया इधर मैं अपनी उमीदों की फ़स्ल बोने लगा Share on: