दिलों की ख़ाक उड़ने से तुम्हें क्या फ़र्क़ पड़ता है किसी के जीने मरने से तुम्हें क्या फ़र्क़ पड़ता है तुम्हारे घर के रस्ते की उदासी ख़त्म हो जाए मुझे घर तक बुलाने से तुम्हें क्या फ़र्क़ पड़ता है तुम्हें अच्छी नहीं लगतीं मिरी ख़ुशियाँ बताओ क्यों मिरे हँसने-हँसाने से तुम्हें क्या फ़र्क़ पड़ता है तुम्हें तो छत मयस्सर है सलामत है तुम्हारा घर मिरा घर डूब जाने से तुम्हें क्या फ़र्क़ पड़ता है मिरे अतराफ़ दुश्मन हैं पराए और अपने भी लड़े तन्हा ज़माने से तुम्हें क्या फ़र्क़ पड़ता है