दिलों में दूरियाँ और फ़ासले रक्खे हुए हैं ब-ज़ाहिर हर किसी से राब्ते रक्खे हुए हैं ब-नाम-ए-ज़िंदगी कुछ क़ाएदे रक्खे हुए हैं नज़र ने अपने अपने ज़ाविए रक्खे हुए हैं बड़ी तंज़ीम और तदरीज से घायल हुआ हूँ सितमगर ने सितम के ज़ाब्ते रक्खे हुए हैं हमारा तो यहाँ पर और मसरफ़ ही नहीं है जहाँ में हम तुम्हारे वास्ते रक्खे हुए हैं मुझे मेरे अलावा कुछ नज़र आए तो कैसे मिरे अतराफ़ में तो आइने रक्खे हुए हैं जहाँ से भी गुज़रता हूँ उलझ जाते हैं पाँव ज़मीं पर हर तरफ़ ही दाएरे रक्खे हुए हैं हमारे कुल असासे की कोई क़ीमत तो होगी जो कुछ भी है तुम्हारे सामने रक्खे हुए हैं