दिलों में जब गुमाँ होंगे मकीं आहिस्ता आहिस्ता तो धुँदला जाएगा नूर-ए-यकीं आहिस्ता आहिस्ता दिल-ए-नादाँ अभी ख़ूगर नहीं ये ग़म उठाने का उठेगी तेरे दर से ये जबीं आहिस्ता आहिस्ता नज़र मंज़िल पे हो तो इख़्तिलाफ़-ए-राह का ग़म क्या पहुँचती हैं सभी राहें वहीं आहिस्ता आहिस्ता कशिश मेरी वफ़ाओं की कहाँ तक राएगाँ जाती झुकी मेरी तरफ़ लौह-ए-जबीं आहिस्ता आहिस्ता मिरे अहबाब ने उस को किया मुझ से जुदा जूँ जूँ वो आता ही गया मेरे क़रीं आहिस्ता आहिस्ता लहू टपका है रफ़्ता-रफ़्ता मिज़्गान-ए-मुग़न्नी से हुआ है ख़ुश दिल-ए-अंदोह-गीं आहिस्ता आहिस्ता मिरे अन्फ़ास की हर ज़र्ब थी कारी से कारी-तर करम फ़रमा हुआ अर्श-ए-बरीं आहिस्ता आहिस्ता हुआ तारी जुमूद आफ़ाक़ के रंगीं इशारों पर हुई गर्दिश से बे-बहरा ज़मीं आहिस्ता आहिस्ता मदद ऐ जज़्बा-ए-अश्क-ए-मुसलसल साँस लेने दे सुखा लेने दे भीगी आस्तीं आहिस्ता आहिस्ता ख़ुदारा बस इसी अंदाज़ से इंकार करता जा बनी जाती है हाँ तेरी नहीं आहिस्ता आहिस्ता मैं अपने होंट सी डालूँगी लेकिन ये न देखूँगी पशेमाँ हो निगाह-ए-शर्मगीं आहिस्ता आहिस्ता बहुत आसाँ न समझो संग-दिल दिल मोम हो जाना उतरती है निगाह-ए-अव्वलीं आहिस्ता आहिस्ता कोई जज़्बा है शायद तुझ में 'हानी' ना-तमाम अब भी सुनी है दिल में आहट सी कहीं आहिस्ता आहिस्ता