दिलों में ख़ाक सी उड़ती है क्या न जाने क्या तलाश करती है पल पल हवा न जाने क्या ज़रा सा कान लगा के कभी सुनो गए रात कहीं से आती है गुम-सुम सदा न जाने क्या मुसाफ़िरों के दिलों में अजब ख़ज़ाने थे ज़ियाँ सफ़र था मगर रास्ता न जाने क्या वो कह रहा था न झाँकूँगा आज सुब्ह इस में मुझे दिखाए यही आईना न जाने क्या दुआ के फूल की ख़ुश्बू सा फैलने वाला वो ख़ुद में ढूँढता था गुम-शुदा न जाने क्या नहीं है किस की नज़र में उफ़ुक़ कोई न कोई इस आँख में थी कोई शय जुदा न जाने क्या तमाम शहर में गाढ़े धुवें का मंज़र है लिखा हुआ था यहाँ जा-ब-जा न जाने क्या वही बिछड़ते दिलों की फ़ज़ा-ए-अश्क-आलूद वही सफ़र कि पुराना नया न जाने क्या निकल गया है ख़लाओं की सम्त ऐ 'बानी' नवाह-ए-जाँ से गुज़रता हुआ न जाने क्या