दिल-रुबा है मिरा बड़ा गुस्ताख़ मैं ने इतना न समझा था गुस्ताख़ अब तो वो शोख़ियाँ लगा करने यक-ब-यक ऐसा हो गया गुस्ताख़ नाज़ बेजा कभी न करता था क्या रक़ीबों ने कर दिया गुस्ताख़ जाँ-फ़िशानी हम उस पे करते हैं राम हरगिज़ न वो हुआ गुस्ताख़ ऐ 'ज़िया' कीजियो समझ के कलाम वो सनम तो है बेवफ़ा गुस्ताख़