न जाने कैसी मोहब्बत के वा'दे रात जले जला जो ख़त तो सखी मेरे दोनों हाथ जले गुज़ारा दिन जो उदासी में शाम कहने लगी बहुत अकेली हूँ मैं कोई मेरे साथ जले पलट के हाल न पूछा फ़रेब-कारों ने ये दिल के साथ मिरे एक और घात जले गँवा के बैठी हूँ मैं आज अपना सब्र-ओ-क़रार कि साथ चाँद के मेरी तू सारी रात जले मैं उस कहानी का किरदार हूँ कि जिस में सदा वफ़ा को लिखने से पहले ही मेरा हाथ जले ख़िज़ाँ के बा'द बहारों की राह देखी तो ये हैफ़ सद कि मिरी आरज़ू के पात जले है प्यास ऐसी कि 'दिलशाद' आँसू तक हैं पिए कि तेरे हिज्र में दिल मेरा बात बात जले