दिल-सोख़्ता को अपने जलाया ग़ज़ब किया नैरंग तुम ने क्या ये दिखाया ग़ज़ब किया ज़िंदा किया है हसरत-ए-मुर्दा को बेवफ़ा तू बा'द-ए-मर्ग गोर पे आया ग़ज़ब किया ये दर्द-ए-दर्द-मंद तमाशा दिखाएगा आफ़त-रसीदा को जो सताया ग़ज़ब किया हम ख़ानुमाँ-ख़राब भटकते कहाँ फिरें बैठे बिठाए उस ने उठाया ग़ज़ब किया सब कह रहे थे बुलबुल-ए-कश्मीर के हरीफ़ उस गुल ने अपना यार बनाया ग़ज़ब किया मजज़ूब-ओ-मस्त पीर-ए-मुग़ाँ क्यूँ न वो रहे 'साक़ी' को जाम-ए-जज़्ब पिलाया ग़ज़ब किया