दाइमी है इश्क़ और इक दाइमी आवाज़ है मेरे कानों में अभी तक बस वही आवाज़ है साथ मेरे रात भर जो जागती आवाज़ है कौन जाने ये तो मेरी रूह की आवाज़ है हिज्र के लम्हों में अब तक ये ख़बर कब हो सकी जागती हूँ मैं या कोई जागती आवाज़ है हिज्र जैसे वस्ल में उस को सुना तो यूँ लगा मौत जैसी ज़िंदगी में ज़िंदगी आवाज़ है अजनबी सी मंज़िलों की अजनबी सी राह में इक मुकम्मल ख़्वाब और इक ख़्वाब सी आवाज़ है आने वाले दौर में 'शाहीन' रहना है मुझे सब कहेंगे ये वही इक दुख भरी आवाज़ है