दिन ढल चुका है तो मैं यही रात ले चलूँ गर वो नहीं तो उस की कोई बात ले चलूँ तुझ जैसा ख़ुश-जमाल मिरे शहर में नहीं दिल चाहता है आज तुझे साथ ले चलूँ तू फ़तह-मंद हो के भी सर क्यूँ झुका रहा मैं तो ख़ुशी से अपनी यही मात ले चलूँ मैं ख़ुश-गुमान रह के ही ख़ुश-बख़्त हो गई मुझ पे गुज़र गए जो वो हालात ले चलूँ मैं चाहती हूँ उस से अजब इंतिक़ाम लूँ 'बुशरा' अब अपने सारे वो जज़्बात ले चलूँ