दिन फ़ुर्सतों के चाँदनी की रात बेच कर हम कामयाब हो गए जज़्बात बेच कर हम ने भी पीले कर दिए हैं बेटियों के हाथ थोड़ी बहुत बची थी जो औक़ात बेच कर मरती है धरती प्यास से रुँधने लगे गले कुछ लोग माला-माल हैं बरसात बेच कर सोचा है अब ख़रीद लें कुछ चाँद पर ज़मीन भाई का हिस्सा बाप के जज़्बात बेच कर तुर्रा है सर पे या कि है दो-चार मन का बोझ रुत्बा मिला है चैन के दिन रात बेच कर फूले नहीं समा रहे मुख़्बिर चमन में आज गुलशन का राज़ दुश्मनों के हाथ बेच कर लगता है अहल-ए-दुनिया को अब पाना है 'सलील' ओहदा ख़ुदा का आदमी की ज़ात बेच कर