दिन को बहर-ओ-बर का सीना चीर कर रख दीजिए रात को फिर पा-ए-गुल-रूयाँ पे सर रख दीजिए देखिए फिर क्या दमकते हैं गुल-अंदामान-ए-शहर इक ज़रा उन में मोहब्बत का शरर रख दीजिए आहुवान-ए-शब गुरेज़ाँ हों तो उन की राह में दाम-ए-दिल रख दीजिए दाम-ए-नज़र रख दीजिए बुत-परस्ती कीजिए इस शिद्दत-ए-एहसास से संग में भी जुज़्व-ए-एहसास-ओ-ख़बर रख दीजिए ज़ोहद अगर जंग-आज़मा हो खींचिए शमशीर-ए-शौक़ हुस्न अगर मद्द-ए-मुक़ाबिल हो सिपर रख दीजिए राहत-जान-ए-'ज़फ़र' हैं शाहिदान-ए-बे-हुनर रौंदने को उन के क़दमों में हुनर रख दीजिए