दिन ले के जाऊँ साथ उसे शाम कर के आऊँ बे-कार के सफ़र में कोई काम कर के आऊँ बे-मोल कर गईं मुझे घर की ज़रूरतें अब अपने-आप को कहाँ नीलाम कर के आऊँ मैं अपने शोर-ओ-शर से किसी रोज़ भाग कर इक और जिस्म में कहीं आराम कर के आऊँ कुछ रोज़ मेरे नाम का हिस्सा रहा है वो अच्छा नहीं कि अब उसे बद-नाम कर के आऊँ 'अंजुम' मैं बद-दुआ भी नहीं दे सका उसे जी चाहता तो था वहाँ कोहराम कर के आऊँ