दिन मुँह खोले गाती धूप By Ghazal << माना किसी ज़ालिम की हिमाय... जुनूँ से खेलते हैं आगही स... >> दिन मुँह खोले गाती धूप रात से क्यूँ शरमाती धूप खेल-कूद कर शाम ढले क्यूँ अपने घर को जाती धूप चलते रहना ही जीवन है हम को ये समझाती धूप दिन जैसे साथी के दुख में रो रो कर मर जाती धूप कभी कभी अच्छी लगती है हल्की सी बरसाती धूप Share on: