दीन-दारी कर रहे थे होशियारी कर रहे थे लोग अपने हल्के-पन से ख़ुद को भारी कर रहे थे लाज़मी हर काम अपना इख़्तियारी कर रहे थे फूल जैसे लोग हम पर संग-बारी कर रहे थे जम्अ' टूटे ख़्वाब की बस रेज़गारी कर रहे थे चाहते थे जो न रोना आह-ओ-ज़ारी कर रहे थे ऊँचे क़द के साए मुझ में ख़ौफ़ तारी कर रहे थे तुम ही आधी कर रहे हो हम तो सारी कर रहे थे कर रहे थे शाइ'री और आबशारी कर रहे थे