दीन-ओ-दुनिया भुला के बैठे हैं रंग ऐसा चढ़ा के बैठे हैं इश्क़ भी मक़्सद-ए-हयात नहीं इश्क़ को आज़मा के बैठे हैं एक शिकवों भरा किया मैसेज एक पिक्चर जला के बैठे हैं फिर मुरव्वत में जस्त भर ली और फिर नई चोट खा के बैठे हैं बात से बात बन पड़े अपनी बात आगे बढ़ा के बैठे हैं जो मिरा साथ देने निकले थे अब वही लड़खड़ा के बैठे हैं हम उसे याद कर सकें फ़र-फ़र इस लिए पास आ के बैठे हैं