दीवाँ वुफ़ूर-ए-ग़म से मिरा रह गया ग़लत मज़मूँ ग़लत रदीफ़ ग़लत क़ाफ़िया ग़लत इक इक घड़ी फ़िराक़ में सौ सौ बरस की थी बे-यार सब हिसाब मह-ओ-साल था ग़लत गर तुम नक़ाब उठाओ रुख़-ए-ताब-दार से ख़ुर्शीद का हो दावा-ए-नूर-ओ-ज़िया ग़लत ख़ुश है वही रज़ा पे जो साबित-क़दम रहे होता नहीं नसीब का लिक्खा हुआ ग़लत किस किस ख़ता-ए-कार को 'नायाब' रोऊँ मैं मेरे हर एक काम की है इब्तिदा ग़लत