दिया साक़ी ने अव्वल रोज़ वो पैमाना मस्ती में कि मैं ना-आश्ना पी कर हुआ दीवाना मस्ती में शराब-ए-आतिशीं वो है कि दो इक घूँट पीते ही जो साक़ी हो तो आता है नज़र पैमाना मस्ती में नज़र आता है मुझ को बोरिया भी तख़्त-ए-ताऊसी गदा रखता है गोया शौकत-ए-शाहाना मस्ती में कोई कहता है मस्जिद है कोई कहता है बाहर जा इलाही क्या मैं भूला हूँ रह-ए-मय-ख़ाना मस्ती में नशा था मुझ को और यारों ने चाहा छीन लें बोतल मगर काम आ गई कुछ जुरअत-ए-रिंदाना मस्ती में ख़बर क्या थी वाइ'ज़ है यही समझा कि साक़ी है उठा और उठ के जा लिपटा मैं बेताबाना मस्ती में मिरी पूजा थी कैफ़-अंगेज़ नज़रों की परस्तारी मिरा सज्दा था पेश-अबरू-ए-जानाना मस्ती में क़दम रखता कहीं हूँ और पड़ता है कहीं जा कर 'नुशूर' इस वक़्त हूँ कुछ होश से बेगाना मस्ती में