दिए जलाए गए आइने बनाए गए कोई बताए यहाँ कौन लोग आए गए मता-ए-दिरहम-ओ-दीनार पर नहीं मौक़ूफ़ मैं सो गया तो मिरे ख़्वाब तक चुराए गए बहुत से लोग सताए गए हैं दुनिया में मगर वो मुझ से ज़ियादा नहीं सताए गए चराग़ सर्द हुए धूप की तमाज़त से दरख़्त नींद के आलम में थरथराए गए पनाह मिल न सकेगी किसी को घर में भी तुयूर सुब्ह से पहले अगर उड़ाए गए सहर के वक़्त हुआ फ़ैसला निकलने का क़दम बढ़ाने से पहले दिए बढ़ाए गए किसी के आम से चेहरे को भूलने के लिए हज़ार रंग के सपने मुझे दिखाए गए फिर एक बार उसी ढंग से बहार आई सरों की फ़स्ल कटी फूल भी उगाए गए ज़मीन पाँव पकडती है उस इलाक़े की कहीं जो खोए गए उस गली में पाए गए मुझे थी जिन की ग़ुलामी की आरज़ू 'साजिद' असीर कर के मिरे सामने वो लाए गए