दियों को ख़ुद बुझा कर रख दिया है और इल्ज़ाम अब हवा पर रख दिया है किसी सर पर रखा है हाथ उस ने किसी गर्दन पे ख़ंजर रख दिया है ये क्या बाहर से आई लहर जिस ने बुझा कर घर का मंज़र रख दिया है अजब हैं उस गली के दूर-अंदेश दिया रखना था पत्थर रख दिया है बड़े मौजी नहनगान-ए-तह-ए-आब समुंदर को हिला कर रख दिया है ये मिदहत-गर भी हैं क्या कार-परदाज़ ज़मीं को आसमाँ पर रख दिया है रखा बच्चों में जज़्ब-ए-रज़्म भी कुछ खिलौनों का तो लश्कर रख दिया है हिसार-ए-गर्द-बाद अपना ठिकाना और उस का नाम भी घर रख दिया है लिक्खे यारों ने कुछ नुक्ते भी या फिर फ़क़त लफ़्ज़ों का दफ़्तर रख दिया है रखा मरहम ही घायल उँगलियों पर क़लम कब हम ने 'महशर' रख दिया है