दो क़दम साथ क्या चला रस्ता बन गया मेरा हम-नवा रस्ता बिछड़ा अपने मुसाफ़िरों से जब कितना मायूस हो गया रस्ता सब हैं मंज़िल की जुस्तुजू में यहाँ कौन देखे बुरा भला रस्ता ऐसी होने लगी थकन उस को दिन के ढलते ही सो गया रस्ता फिर नई काएनात देखूँगा मेरे अंदर अगर मिला रस्ता तू बड़ा ख़ुश-नसीब है 'आज़र' तुझ पे आसान हो गया रस्ता