दो-चार सितारे ही मिरी आँख में धर जा कुछ देर तो ऐ साअत-ए-शब मुझ में ठहर जा अब और सँभाली नहीं जाती तिरी हुर्मत यूँ कर ग़म-ए-जानाँ मेरी नज़रों से उतर जा ता-उम्र तिरा नक़्श-ए-फ़रोज़ाँ रहे मुझ में इक ज़ख़्म की सूरत मिरे माथे पे उभर जा छोड़ आना वहीं पर ज़रा आवारा-मिज़ाजी सहरा की तरफ़ ऐ दिल-ए-नादान अगर जा या हो जा तू दरिया की निगाहों में तराज़ू या तिश्ना-लबी साथ लिए जाँ से गुज़र जा जब ज़ेहन को सुननी ही नहीं बात तुम्हारी दिल तू भी रूसूमात-ए-तफ़ाहुम से मुकर जा