दोनों-जहाँ को ज़ीनत-ए-दामाँ किए हुए बैठा हूँ दिल में आप को मेहमाँ किए हुए नज़्ज़ारा-ए-जमाल मयस्सर हो किस तरह आए हैं आप ज़ुल्फ़ परेशाँ किए हुए दीवाने जा रहे हैं तिरी जुस्तुजू में आज दामन की धज्जियों को गरेबाँ किए हुए आओ जनाब-ए-शैख़ चलो मय-कदा चलें अर्सा हुआ है मय-कदा वीराँ किए हुए किस सम्त जा रहा है किधर ले चला मुझे कम्बख़्त दिल तसव्वुर-ए-जानाँ किए हुए 'जाफ़र' मैं उन की राह में बैठा हूँ मुद्दतों दाग़ों से दिल के जश्न-ए-चराग़ाँ किए हुए