दोश पर बार-ए-ग़म उठाए हुए चल रहा हूँ क़दम जमाए हुए मुझ को मेरी अना ने मार दिया जो भी अपने थे सब पराए हुए फिर उसी रहगुज़र पे बैठा हूँ आरज़ू के दिए जलाए हुए साहिलों पर पहुँच के डूब गए थे जो तूफ़ाँ से बच के आए हुए हसरतें ख़ून हो गईं 'मंज़र' वो जो गुज़रे नज़र बचाए हुए