दोस्त है वो पीठ पर आएगा नेज़ा तान कर भाई है तो जा मिरी रुस्वाई का सामान कर वर्ना सीधे से अदा कर दे शराफ़त का ख़िराज और आज़ादी की ख़्वाहिश है तो बढ़ एलान कर तुझ को हक़-तलफ़ी का ये एहसास क्यों होने लगा सारे अंधे बाँटते हैं रेवड़ी पहचान कर आ गले मिल दर्द का रिश्ता है अपने दरमियाँ इतने ज़ोरों से न हिन्दोस्तान पाकिस्तान कर मेरे ग़म-ख़ाने को जैसे तू ने जल-थल कर दिया मेहरबाँ बादल किसी सहरा को नख़लिस्तान कर रौशनी रहती है तेरी शीश-महलों में सदा चाँद प्यारे मेरी कुटिया पर कभी एहसान कर उस ने पूछा तक नहीं 'परवेज़' हो किस हाल में मैं तो उस के पास आ बैठा था अपना जान कर