दोस्त का घर और दुश्मन का पता मालूम है ज़िंदगी हम को तिरा ये सिलसिला मालूम है ज़िंदगी जा हम भी कू-ए-आरज़ू तक आ गए इस के आगे हम को सारा रास्ता मालूम है क्या मुनज्जिम से करें हम अपने मुस्तक़बिल की बात हाल के बारे में हम को कौन सा मालूम है या तो जो ना-फ़हम हैं वो बोलते हैं इन दिनों या जिन्हें ख़ामोश रहने की सज़ा मालूम है शेर पर तो आप की क़ुदरत मुसल्लम है 'शुजा' इस ज़माने का भी कुछ अच्छा बुरा मालूम है