दोस्ती अपनी किसी से न शनासाई है ज़िंदगी एक मुसलसल शब-ए-तन्हाई है हुस्न इनायत है रिफ़ाक़त है मसीहाई है इश्क़ इबादत है परस्तिश है जबीं-साई है राज़ महसूस है इस दर्जा कि मेरे दिल में ख़ुद तमाशा है वो और ख़ुद ही तमाशाई है जिस के पीने में बक़ा जिस के पिलाने में सवाब मेरी तक़दीर में ज़ाहिद वो शराब आई है हम से मिल लेते हैं ये उन की दिल-आराई है दूर जा बैठते हैं हम यही दानाई है आँखों आँखों में पिला दी मिरे साक़ी ने मुझे ख़ौफ़-ए-ज़िल्लत है न अंदेशा-ए-रुस्वाई है हम्द-ए-बारी है मोहब्बत जो उसी से हो जाए जिस को मख़्सूस कोई अपनी अदा भाई है वो मुझे देख के पर्दे में जो छुप जाते हैं मैं समझता हूँ मोहब्बत मुझे रास आई है निस्फ़ सद-साल से भी ज़्यादा हुई उम्र तमाम और किस दिन के लिए उन की मसीहाई है दिल में रखते हैं हरीफ़ों से छुपा कर मुझ को उन को मालूम है रहबर मिरा सौदाई है ठीक उर्दू अभी लिखनी भी नहीं आई है ऐसी कम-इल्मी पे क्या ख़ूब ये गोयाई है मेरी आदत है वफ़ा दिल में शकेबाई है बात यूँ बारगह-ए-नाज़ में बन आई है