दोस्तो के काम आना जुर्म है ख़ुद को दरिया-दिल बनाना जुर्म है अश्क-रेज़ी की इजाज़त है मगर एहतिजाजन मुस्कुराना जुर्म है मुन्हरिफ़ तारीकियों के साज़ पर कोई रौशन गीत गाना जुर्म है जब नुमाइश की चमक हो ना-गुज़ीर अपनी रौनक़ भूल जाना जुर्म है सर झुकाना अच्छी आदत है मगर तंग आ कर सर उठाना जुर्म है पत्थरों के बाग़ में साजिद-'असर' काँच के पौदे लगाना जुर्म है