दुआ किसी की करे या न मुस्तजाब करे मगर तू चाहे तो ज़र्रे को आफ़्ताब करे गुनाह भी जो करे रश्क-ए-सद-सवाब करे जो नारवा हो उसे भी रवा शबाब करे मिरी नज़र कि जिसे चाहे बे-नक़ाब करे ख़ुदा वो दिन तो दिखाए जो तू हिजाब करे मिरा ये काम कि मेरी तलब मुसलसल सिद्क़ तिरा ये काम कि जब चाहे कामयाब करे न ख़ौफ़-ए-पुर्सिश-ए-महशर न फ़िक्र-ए-रोज़-ए-हिसाब बशर गुनाह पर आए तो बे-हिसाब करे ख़िरद से बन न पड़ी कुछ तो कह दिया दिल से ख़ुदा तुझे तिरे मक़्सद में कामयाब करे 'सहर' को तौबा से इंकार तो नहीं लेकिन निगाह-ए-मस्त अगर माइल-ए-शराब करे